Mung ki kheti भारत में एक महत्वपूर्ण फसल है और इसकी सही समय जानना किसानों के लिए
बहुत जरुरी है या जानने से किसान अपनी फसल की तैयारी कर सकते है और अधिक उत्पादन प्राप्त
कर सकते है भारत में विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग होता है लेकिन सामान्यतः यह खरीफ और रबी दोनों
मौसम में की जाती है ।
मूंग की खेती एक प्रमुख फसल
भारत में मूंग की खेती एक प्रमुख फसल है बल्कि या कई पोषक तत्वों का भी स्रोत है मूंग की फसल को
इसके उच्च पोषक मूल्य और कई स्वास्थ लाभों के लिए जाना जाता है मूंग में प्रोटीन , फाइवर और भिविन्न
विटामिन्स और मिनरल्स की उच्च मात्रा होती है , जो एक स्वास्थ्यवर्धक विकल्प बताती है, इसेक आलावा
mung ki kheti भारत की खाद्य सुरक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ।
Mung ki kheti का समय
खरीफ सीजन में मूंग की खेती , जून , जुलाई में की जाती है या सीजन मानसून के आगमन के साथ होता है ।
जिससे फसल को पर्याप्त जल मिलता है खरीफ सीजन में मूंग की खेती के लिए अच्छी वर्षा और उपयुक्त
तापमान होना आवश्यक है ।
रबी सीजन में मूंग की खेती , फरवरी , मार्च में की जाती है इस सीजन में मूंग की खेती के लिए ठंडे मौसम
की आवश्यकता होती है इस सीजन में मूंग की खेती करने से फसल को कम पानी की आवश्यकता होती है
mung ki kheti के लिए उपयुक्त मिट्टी का चयन करना आवश्यक है इस सीजन में नियमित सिंचाई की
आवश्यकता होती है ।
जायद सीजन में मूंग की खेती , मार्च अप्रैल में की जाती है , यह सीजन गर्मियों के आगमन के साथ होता है ।
जिससे फसल को अधिक तापमान का सामना करना पड़ता है जायद सीजन में मूंग की खेती करने से फसल
को अधिक पानी की आवश्यकता होती है जायद सीजन में मूंग की खेती के लिए विशेष देख भाल की
आवश्यकता होती है जैसे कि नियमित सिंचाई और खरपतवार निंयत्रण ।
बुवाई का समय विभिन्न क्षेत्रों के अनुसार
mung ki kheti भारत में विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग समय पर की जाती है , भारत एक विविध देश है और
विभिन्न क्षेत्रों में मूंग की बुवाई का समय अलग , अलग होता है उत्तर भारत में मूंग की खेती मुख्य रूप से खरीफ
सीजन में की जाती है इस क्षेत्र में मूंग की बुवाई , जुलाई के मध्य से अगस्त के मध्य तक की जाती है ।
उत्तर भारत में विभिन्न राज्यों जैसे , पंजाब , जुलाई अगस्त , हरियाणा , जुलाई अगस्त , उत्तर प्रदेश ?
जुलाई अगस्त , खरीफ सीजन में की जाती है , दक्षिण और मध्य भारत में खरीफ और जायद सीजन में की जाती
है , इस क्षेत्र में मूंग की बुवाई , मई , जून और , अक्टूबर , नवंबर में की जाती है दक्षिण और मध्य भारत के राज्यों
जैसे , महाराष्ट्र , कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में मूंग की खेती के लिए यह समय उपयुक्त माना जाता है ।
खरीफ सीजन के लिए उपयुक्त किस्में
खरीफ सीजन के दौरान mung ki kheti के लिए कुछ विशेष किस्में उपयुक्त होती है , जो अधिक उपज और
रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करती है , पीडीएम 11 यह किस्म अधिक उपज देने वाली और रोग प्रतिरोधक है ।
एम एम एल- 668 इसकी विशेषता है उच्च गुणवत्ता वाली दाल का उप्तादन होता है ?
रबी जायद सीजन के लिए उपयुक्त किस्में रबी और जायद सीजन में mung ki kheti की जा सकती है , बशर्ते
सही किस्म का चयन किया जाए , किस्म एमयू 1. रोग प्रतिरोधक और अधिक उपज 1200 से 1500 किग्रा / ?
हेक्टेयर , आईपीएम – 023 उच्च गुणवत्ता और अधिक उपज 1000 से 1300 उपज किग्रा / हेक्टेयर , इस उन्नत
और किस्मों को अपनाकर किसान न केवल अपनी उपज बढ़ा सकतें है बल्कि अपनी फसल को विभिन्न रोगों और ,
कीटों से भी बचा सकतें है ।
मूंग की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी
मूंग की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी का चयन करना महत्वपूर्ण है , मूंग की फसल विभिन्न प्रकार की मिट्टी
में उगाई जा सकती है , लेकिन इसकी उत्पादन मिट्टी की गुणवत्ता और जलवायु पर निर्भर करती है , उपयुक्त मिट्टी का
प्रकार , मूंग की खेती के लिए दोमट मिट्टी , या रेतीली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है इस प्रकार की मिट्टी में जल
धारण क्षमता अच्छी होती है और यह फसल की जड़ों को अच्छी तरह से विकसित होने देती है , मूंग की फसल भारी मिट्टी
में भी उगाई जाता सकती है , लेकिन इससे जल जमाव की समस्या हो सकती है जिससे फसल को नुकसान पहुंच सकता
है , तापमान वर्षा की आवश्यकता , मूंग की खेती के लिए तापमान और वर्षा की आवश्कताएँ भी महत्वपूर्ण है ,
मूंग की फसल के लिए आदर्श तापमान 20 से 30 डिग्री सेल्सियस होता है , वर्षा मूंग की खेती के लिए ,
600 से 800 मिमी की वार्षिक वर्षा पर्याप्त होती है , हलांकि फसल की बुवाई के समय और फसल की वृद्धि
के दौरान पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है ।
बुवाई की विधि
मुंग की बुवाई के लिए सही विधि का चयन करना भी बहुत महत्वपूर्ण है , आमतौर पर मूंग की बुवाई लाइन में ?
बुवाई विधि से की जाती है इससे पौधों को समान अंतर पर लगाया जा सकता है , और उनकी देख भाल ,
करना आसान है , लाइन में बुवाई करते समय , दो लाइनों के बीच की दूरी 30 सेमी और पौधों के बीच की दूरी
10 सेमी रखनी चाहिए इससे पौधों को पर्याप्त जगह मिलता है और वे सवस्थ रूप से विकसित हो पातें है ,
उर्वरक प्रबंधन , मूंग की फसल के लिए उर्वरक प्रबंधन भी बहुत महत्वपूर्ण है , mung ki kheti में नाइट्रोजन
फास्फोरस , और पोटाश जैसे उर्वरकों का उपयोग किया जाता है , आमतौर पर मूंग की खेती के लिए 20 किलो
ग्राम नाइट्रोजन , 40 किलो ग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए ।
मूंग की फसल की देख भाल करना महत्वपूर्ण है , जो फसल की उत्पादन को बढ़ाने में मदद करती है , फसल
की देख भाल में सिंचाई प्रबंधन , खरपतवार नियंत्रण और कीट एवं रोग प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण पहलू शामिल है ।
सिंचाई प्रबंधन , मूंग की फसल को उचित समय पर पानी देना आवश्यक है , आमतौर पर मूंग की फसल को 2 से
3 सिंचाई की आवश्यकता होती है , जो फसल की वृद्धि और विकास के विभिन्न चरणों पर निर्भर करती है , सिंचाई
के लिए महत्वपूर्ण चरण , बुवाई के तुरंत बाद , फूल आने से पहले फली बनने के समय ।
प्रमुख कीट और उनका नियत्रण
प्रमुख कीट और उनका नियत्रण , तना छेदक कीट नाशको का छिड़काव , पत्ती खाने वाले कीट , जैविक कीटनाशकों ,
का उपयोग , प्रमुख रोग और नियत्रण , मूंग की फसल में होने वाले प्रमुख रोगों में पाउडरी मिल्ड्यू और लीफ स्टॉफ ?
शामिल है , इन रोगों के नियंत्रण के लिए फफूंद नाशकों का उपयोग किया जाता है , फसल की देख भाल में कीट और
रोग प्रबंधन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है , जिससे फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार होता है ।
मूंग की फसल की कटाई
मूंग की फसल की कटाई का सही समय निर्धारित करने के लिए , हमें इसकी परिपक्ता को समझना होगा ,
आमतौर पर मूंग की फसल 60 से 70 दिनों में तैयार हो जाती है , लेकिन यह समय विभिन्न कारकों जैसे किस्म
जलवायु और मिट्टी की गुणवत्ता पर निर्भर करता है , कटाई तब करनी चाहिए ,जब पौधे सूखने लगे और पत्तियाँ झड़ने
लगें , इस समय फली का रंग भी बदल जाता है , और वे सूख जाती है ,
कटाई के दौरान यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है , कि फसल को सही तरीके से काटा जाए ताकि उपज ,
में कमी न हो ।