Chai ki kheti भारत के कुछ राज्यों में होती है , असम यह भारत का सबसे बड़ा चाय उप्तादन राज्य है ।
यहाँ काली चाय के लिए प्रसिद्ध है , ब्रम्हापुत्र घाटी के बगानों के लिए जानी जाती है ।
चाय की खेती वाले प्रमुख राज्य
पक्षिम , बंगाल , दार्जिलिंग , और तराई यहाँ के प्रमुख चाय उत्पादन क्षेत्र है , दार्जिलिंग चाय , अपनी अनोखी सुगंध
और स्वाद के लिए विश्व प्रसिद्ध है , तमिलनाडु , नीलगिरि पहाड़ियाँ तमिलनाडु में चाय उप्तादन का मुख्य केंद्र है ।
यह मुख्य रूप से दक्षिण भारतीय चाय उगाई जाती है ।
केरल , मुन्नार , वायनाड और इडुक्की केरल के प्रमुख चाय उप्तादन जिले है । हिमांचल , प्रदेश , कागड़ा घाटी अपनी
विशेष कांगड़ा चाय के लिए जानी जाती है । यह हरी चाय और काली चाय दोनों शामिल है , उत्तराखंड , देहरादून और
नैनीताल जैसे क्षेत्रो में भी chai ki kheti होती है , कर्नाटक , चिकमंगलूर और कोडागु , जैसे क्षेत्रों में चाय का उप्तादन
होता है । त्रिपुरा , यह भी पूर्वोत्तर भारत का एक महत्वपूर्ण चाय उत्पादन राज्य है ।
Chai ki kheti के लिए जलवायु
तापमान , chai ki kheti के लिए 10 डिग्री सेल्सियस से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे उपयुक्त माना जाता है ।
20 डिग्री सेल्सियस से 27 डिग्री सेल्सियस का तापमान इष्टम वृद्धि के लिए होता है । वर्षा , चाय को गर्म आर्द्र जलवायु
की आवश्यकता होती है , जिसमें 150 से 300 सेमी वार्षिक वर्षा हो , पूरे वर्ष सामान रूप से वितरित वर्षा कोमल
पत्तियों की निरंतर वृद्धि सुनिश्चित करती है , जलभराव इसके पौधों के लिए हानिकारक है । आर्द्रता , शुष्क और गर्म
जलवायु में चाय के पौधों का विकास अच्छा होता है लेकिन कम आर्द्रता फसल के लिए विनाशकारी हो सकती है ।
अम्लीय मिट्टी
chai ki kheti के लिए हल्की अम्लीय मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है , इसका pH, मान 4.5 से 6 के बीच
होता है । स्त्रोतों में यह pH, मान 4.5 से 5.5 तक भी बताया जाता है । जल निकासी , मिट्टी ?
में जल निकासी की की व्यवस्था होनी चाहिए , जलभराव से पौधों को नुकसान हो सकता है । कार्बनिक पदार्थ
कार्बनिक पदार्थों से भरपूर मिट्टी चाय के लिए सबसे अच्छी होती है ।
मिट्टी का प्रकार , बुलई , दोमट , लाल , दोमट , जलोढ़ और लैटेराइट मिट्टी cahi ki kheti के लिए आदर्श है ।
पहाड़ी ढलानों पर पाई जाने वाली दोमट मिट्टी भी अच्छी होती है ।
भूमि की तैयारी और रोपण
खेत की तैयारी शुरू करने के लिए , भूमि को जोतकर समतल किया जाता है । जल निकासी के लिए उचित व्यवस्था
की जाती है , खेती तैयार करते समय , गोबर की खाद या जैविक खाद का उपयोग किया जाता है , रोपण विधि ,
चाय के पौधे बीज या कलम विधि से तैयार किए जाते है , कलम विधि से तैयार पौधे आसान होते है ।
रोपड़ का समय
अक्टूबर , नवंबर सबसे अच्छा समय है , चाय के पौधों को लगानें के लिए मानसून के बाद का समय भी अच्छा होता है ।
जून से अगस्त , और मार्च से मई भी उपयुक्त है , पौधा रोपण , पौधों को खेत में तैयार गड्ढो में उगाया ?
जाता है , पालीथीन से निकाल कर पौधों को लगातें है , और मिट्टी से ढक देते है । चाय के पौधों
के विकास के लिए छाया की जरुरत होती है ।
सिंचाई , चाय की खेती में मुख्य रूप से बारिश के माध्यम से होती है , बारिश कम होनें या न होने पर हर दिन ,
फ़व्वार विधि से सिंचाई करनी चाहिए । कटाई और तुड़ाई , पौधों को लगाने के लगभग एक साल बाद पत्तियां
तुड़ाई के लिए हो जाती है , किसान वर्ष में 3 बार पतियों की तुड़ाई करके फसल प्राप्त कर सकतें है,
कीट और रोग
चाय की फसल में मुख्य रूप से लालकीट , शैवाल , अंगमारी , गुलाबी रोग , फफोला , काला विगलन आदि रोग ,
होते है । कॉपर सल्फेट का छिड़काव करके इन रोगों से बचाया जा सकता है ।
चाय की किस्में
चाय को प्रसंस्करण के तरीके के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है । मुख्य रूप से 6 किस्में है । सफ़ेद चाय , पीली चाय
हरी चाय , ऊलोंग या बलोंग चाय , काली चाय , चीन में लाल चाय के नाम से जानी जाती है । असम चाय , अपने गहरे
रंग और मजबूत स्वाद के लिए मानी जाती है , दार्जिलिंग चाय , इसमें विभिन्न किस्में , सफ़ेद , काली , हरी ऊलोंग
होती है , जो गैस्ट्रिक अल्सर और मोटापे को रोकने में मदद करती है ।
नीलगिरी चाय , दक्षिण भारत की पहाड़ियों में उगने वाली यह चाय सुगंधित और मुलायम स्वाद के लिए जानी जाती है ।
कांगड़ा चाय , हिमांचल प्रदेश ,की यह चाय हल्के फलदार स्वाद वाली होती है , कश्मीरी कहवा , हरी चाय , केसर
दालचीनी और इलायची के साथ बनाई जाती है । मसाला चाय , दालचीनी , लौंग , इलाइची जैसे मसालों के साथ बनाई
जाती है । हर्बल चाय , तुलसी अदरक , पुदीना , कैमोमाइल , लेमन ग्रास जैसी जड़ी बूटियों से बनी चाय ।
चाय की खेती मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है । यहाँ उचित ढलान और जल निकासी आसानी से मिलता है ।