Jeere ki kheti भारत में बहुत महत्वपूर्ण है , खासकर राजस्थान और गुजरात में यहाँ जीरे का उत्पादन बहुत ,
होता है ।
जीरे की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी
जीरा एक रबी फसल है । इसे ठंडी और शुष्क जलवायु की जरुरत होती है , तापमान बुवाई के समय 24 से 28 ,
डिग्री सेल्सियस और वानस्पतिक वृद्धि के समय 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त रहता है । बीज पकने
के समय अपेक्षाकृत गर्म और शुष्क मौसम अच्छी पैदावार के लिए जरुरी है , मिट्टी jeere ki kheti के लिए बुलई
दोमट और दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है , जिसमें जल निकासी की उचित व्यवस्था हो , उपजाऊ , काली
और पीली मिट्टी में भी इसकी खेती की जा सकती है । खेत में जलभराव नही होना चाहिए , मिट्टी का pH स्तर 6 से
7 के बीच होना चाइए ।
Jeere ki kheti की तैयारी
जीरे की बुवाई से पहले खेत को अच्छी तरह तैयार करना जरुरी है , सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से एक बार
गहरी जुताई करें , इसके बाद हैरो से एक क्रॉस जुताई करके पाटा लगा दें , फिर कल्टीवेटर से एक जुताई करके ?
पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरी बनालें , खेत से खरपतवार पूरी तरह से हटा दें , बुवाई से पहले 5 से 6
टन गोबर की अच्छी सड़ी हुई खाद या कम्पोस्ट खाद प्रति एकड़ खेत में अच्छी तरह मिला दें , बुवाई के ,
लिए 5 से 8 फीट की क्यारियां बनाए ।
उन्नत किस्में
जीरे की कुछ प्रमुख उन्नत किस्में जो अच्छी पैदावार देती है । आर जेड 19 . यह किस्म 120 से 125 दिनों में पककर
तैयार हो जाती है , इसमें उखटा , छिछिया व झुलसा जैसे रोग लगने की संभावना कम होती है , आर जेड , 209.
इसके दाने बड़े और गहरे भूरे होते है , यह भी 120 से 125 दिनों में तैयार होती है , जी सी 4
GC – 4 यह किस्म 105 से 110 दिन में ही पककर तैयार हो जाती है ।
इसके दाने आकर्षक , सडौल और बड़े होते है , आर जेड – 223 यह किस्म 110 से 115 दिनों में तैयार
हो जाती है । इसके दाने आकर्षक व लंबे होते है । CZN-94 यह किस्म 90 से 100 दिनों में
ही तैयार हो जाती है । इसे कम सिंचाई की जरुरत पड़ती है ।
बुवाई का समय और विधि
बुवाई का समय , जीरे की बुवाई 1 से 15 नवंबर के बीच कर देनी चाहिए । बीज की मात्रा , प्रति हेक्टेयर 10 किलोग्राम
बीज पर्याप्त होता है , बीज उपचार , जनित रोगों से बचाव के लिए बुवाई से पहले बीज को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम ,
50 डब्ल्यू पी या 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें ।
बुवाई विधि , इस विधि में तैयार क्यारियों में बीजों को एक साथ छिटक कर दन्ताली से मिटटी की एक हल्की परत
चढ़ा दी जाती है , कतारों में बुवाई , इस विधि में क्यारियों मे 20 से 30 सेंटी मीटर की दूरी पर ?
कतारें बनाकर बीजों को बोया जाता है , बीज को 1 से 1.5 सेंटी मीटर से अधिक गहराई पर नहीं बोना
चाहिए । कतारों मे बुवाई करने से सिंचाई और खरपतवार निकालने में आसानी होता है ।
खाद और उर्वरक प्रबंधन
मिट्टी की जाँच के बाद खाद और उर्वरकों की मात्रा देना सबसे अच्छा रहता है , सामान्य परिस्थितियों मे बुवाई से पहले
5 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद प्रति एकड़ अंतिम जुताई के समय खेत में अच्छी प्रकार मिला दें , बुवाई के ?
समय , 50 किलो ssp सिंगल सुपर फॉस्फेट , 20 किलो यूरिया और 10 किलो पोटाश प्रति एकड़ मिट्टी मे मिला दें
टॉप ड्रेसिंग , पहली सिंचाई पर फसल लगभग एक महीने की हो जाए , तब 20 किलो यूरिया प्रति एकड़ और
2 किलो ह्यूमिक एसिड प्रति एकड़ छिड़काव कर सकते है ।
सिंचाई प्रबंधन
जीरे की फसल को बहुत पानी की जरुरत नहीं होती । पहली सिंचाई , बुवाई के तुरंत बाद एक हल्की सिचाई करें ।
ध्यान रहे , पानी का बहाव तेज न हो , दूसरी सिंचाई , बुवाई के 6 से 7 दिन बाद करें , जिससे बीज का अंकुरण
अच्छा होता है । बाद की सिंचाई , मिट्टी की नमी और मौसम के अनुसार 15 से 25 दिन के अंतराल ?
कुल 5 सिंचाई पर्याप्त होती है , फ़व्वार विधि , इस विधि से सिंचाई करने से अधिक लाभ मिलता है , बुवाई के
समय 10, 15 , 30 , 50 , 70 दिनों की अवस्था पर फव्वारे से सिंचाई करें , लगभग 3 घंटे ।
निराई गुड़ाई और कीट रोग नियंत्रण
निराई गुड़ाई , पहली निराई गुड़ाई बुवाई के 30 से 35 दिन बाद और दूसरी 55 से 60 दिन बाद करनी चाहिए ।
यह खरपतवार नियंत्रण के लिए जरुरी है , रोग नियंत्रण , उखटा , बिल्ट , यह एक गंभीर रोग है , इसकी रोक
थाम के लिए बीज को उपचारित करके बोना चाहिए । ट्राइकोडर्मा की 20. 50 किलो ग्राम मात्रा को 100 किलो
कम्पोस्ट के साथ मिलाकर छिड़काव करें । एक ही खेत मे लगातार जीरे की फसल न उगाएं और गर्मियों ?
मे खेत की गहरी जुताई करें ।
छाछिया रोग , पाउडर मिल्ड्यू लक्षण दिखने पर फसल में 15 से 20 किलोग्राम गंधक का छिड़काव कर सकते है ।
या डायनोकेप का छिड़काव करें । झुलसा रोग , अल्टेरनेरिया ब्लाइट , इसका प्रकोप दिखने पर खेत में 2%
मेन्कोजेब का छिड़काव करें ।
कीट नियंत्रण , चेपा या एफिड , मोयला , यह कीट पौधों के कोमल भागों का रस चूसकर नुकसान पहुंचाता है ।
इसके नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड की 0.5 लीटर या मैलाथियान 50 ई सी की 1 लीटर या एसीफेट की ,
750 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी मे घोल बनाकर छिड़काव करें । दीमक , दीमक पौधों की
जड़ें काटकर फसल को नुकसान पहुँचाती है।
कटाई और उपज
कटाई का समय ,जीरे की फसल आमतौर पर 110 से 120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है । जब जीरे का तना और
बीज पीले पड़ने लगें और पत्तियां सूखकर गिरने लगें , तो फसल कटाई के लिए तैयार है । कटाई विधि , फसल को
दांतली से काटकर अच्छी तरह सुखा लें , सूखने के बाद थ्रेसर से दाना अलग कर लें । उपज , उन्नत कृषि विधियों
को अपनाकर प्रति हेक्टेयर 6 से 10 किंटल जीरे की उपज प्राप्त की जा सकती है ।