Jut ki kheti

Jut ki kheti भारत में एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है । इसके रेशों से बोरे , रस्सी चटाई और अन्य उत्पादन ?

बनाए जाते है , पूर्वी भारत के राज्यों में जैसे , पश्चिम , बंगाल , बिहार , असम, ओडिसा , उत्तर प्रदेश , त्रिपुरा ,

और मेघालय में इसकी खेती की जाती है , भारत विश्व में जूट का सबसे बड़ा उत्पादन है ।

Jut ki kheti

जूट की खेती के लिए कुछ आवश्यक

जूट की अच्छी पैदावार के लिए कुछ विशेष शर्तें होती है , जलवायु , जूट को गर्म और आर्द्र जलवायु पसंद है ।

26°c से 37°c के बीच का तापमान सबसे अच्छा होता है , उच्च आर्द्रता लगभग 90% और पर्याप्त वर्षा लगभग

50 सेमी भी आवश्यक है , क्योंकि यह एक बरसाती फसल है ,

 

मिट्टी समतल , अच्छी जल निकासी वाली जलोढ़ या दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है , मिट्टी का पीएच pH मान

6 से 7.5 के बीच होना चाहिए नदियों के गाद से भरी बाढ़ की मिट्टी जूट पैदावार के लिए विशेष रूप से अच्छी

मानी जाती है ।

Jut ki kheti

जूट की खेती एक व्यवस्थित प्रक्रिया है । इसमें कुछ महत्वपूर्ण चरण होते है , खेत की तैयारी बहुत जरुरी है , यह अच्छी

उपज के लिए काफी होता है , जुताई , खेत को 2 से 3 बार गहरी जुताई से तैयार करें , इससे मिट्टी  ?

ढीली हो जाती है , और हवा का संचार बेहतर होता है , समतल करना , जुताई के बाद खेत को पाटा लगाकर

समतल करें , इससे बुवाई के लिए एक सामान सतह मिलती है ।

Jut ki kheti ki tayari

खाद का प्रयोग , बुवाई से पहले खेत में पर्याप्त मात्रा में गोबर की खाद या कंपोस्ट डालें । यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है ।

यदि मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी हो तो थोड़ी मात्रा में नाइट्रोजन भी दे सकते है ।

 

बुवाई का समय

जूट एक गर्म मौसम की फसल है । इसलिए , सही समय पर बुवाई करना बहुत महत्वपूर्ण है । ऊँची भूमि

मार्च से जुलाई तक बुवाई की जा सकती है , नीची भूमि में फरवरी में भी बुवाई की जाती है । निचली भूमि

में नमी अधिक समय तक बनी रहती है ।

Jut ki baivai

बुवाई की विधि , अच्छी उपज और बेहतर प्रबंधन के लिए लाइनों में बुवाई करना बेहतर होता है , लाइनों में बुवाई ,

दूरी लाइनों के बीच दूरी 30 सेमी होना चाहिए पौधें के बीच दूरी 7 से 8 सेमी होना चाहिए ।

बीज , को 2 से 3 सेमी गहराई पर बोएं । इससे अंकुरण पर असर नहीं पड़ेगा , उपकरण , सीड ड्रिल या हल

का उपयोग बुवाई के लिए किया जाता है ।

 

बीज की मात्रा , एक एकड़ में 1. 5 से 2 किलो ग्राम बीज की मात्रा की आवश्यकता होती है । यह जूट की किस्म पर

निर्भर करता है , बीज का उपचार , बुवाई से पहले बीजों को फफूंद नाशक जैसे थायरम या कैप्टन से उपचारित करें ।

इससे शुरुआती रोगों से बचाव होगा ,

 

खाद  और उर्वरक प्रबंधन

जूट की अच्छी उपज के लिए उचित पोषण आवश्यक है । नाइट्रोजन N पौधों की वृद्धि के लिए बहुत जरुरी ,

है । बुवाई के 3 से 4 सप्ताह बाद पहली खुराक दें । दूसरी खुराक 6 से 8 सप्ताह के बाद दें ।

 

फास्फोरस P , और पोटेशियम K, ये जड़ और पौधे के विकास के लिए काफी महत्वपूर्ण है । इन्हें खेत तैयार

करने या बुवाई के समय मिट्टी में मिलाएं , मिट्टी का परिक्षण करें और उर्वरक की मात्रा तय करें ।

 

निराई गुड़ाई और सिंचाई

सिंचाई , वर्षा कम होनें पर सिंचाई जरूर करें , खासकर फूल आने और रेशे बनने के समय , खरपतवार नियंत्रण ,

खरपतवार पौधों को बहुत नुकसान पंहुचा सकते है , खासकर शुरुआती 2 से 3 महीनों मे पौधों की पहली निराई ,

गुड़ाई 3 से 9 इंच ( 7.5 – 22.5) सेमी के होने पर करें । इसके बाद 2 से 3 बार और करें ।  

रासायनिक खरपतवार नाशक , विशेष्यज्ञों की सलाह पर खरपतवार नाशकों का उपयोग भी किया जा सकता है ।

Jut ki kheti

कीट और रोग नियंत्रण

फसल को सवस्थ रखने के लिए कीट और रोगों का नियंत्रण बहुत जरुरी है , तना सड़न रोग , ( Stem Rot) पत्तियां ,

पीली हो जाती है , और तना सूखने लगता है , खेत में जल जमाव न होने दें , बीज को ट्राइकोडर्मा से पहले उपचारित ?

करें । मूल विगलन रोग , ( Root Rot) पौधों की जड़े गलने लगती है , जल निकासी की वयवस्था करें , कार्बेंडाजिम

का छिड़काव करें ।

 

कैपटर पिलर , रस चूसने वाले कीट , इनसे बचाव के लिए स्पाइनोसैड या डायनोटेफेरन का उपयोग करें ।

पत्ती रोलर रोग , ( Leaf Roller) संक्रमित पत्तियों को तोड़कर फेंक दें । फेरोमोन जाल , का उपयोग करें

कबोसल्फान , क्लोरो पायरीफास का छिड़काव करें ।

 

कटाई समय 

जूट की फसल तैयार होने में 120 से 140 दिन लगते है , रेशे के लिए , पौधों को पकने से पहले काटें , जब वे फूलना

शुरू करें या फली अवस्था मे हो तो , पौधों को जमीन के करीब से काटें , रेशा निकलने की प्रक्रिया jut ki kheti

में पानी में भिगोना बहुत महत्वपूर्ण है

Jut Katai

पानी में भिगोना , कटाई के बाद , जूट के बंडलों को स्थिर या धीमी गति से बहने वाले पानी में डाला जाता है , इसे

रेटिंग कहते है , पानी में डालने से पौधे के रेशों के बीच के पेक्टिन और गोंद टूट जाते है , यह

सूक्ष्मजीवों के कारण होता है ।

 

अवधि , रेटिंग  की प्रक्रिया 8 से 30 दिनों तक हो सकती है । यह पानी के तापमान पर निर्भर करता

है रेशा निकालना , जब रेटिंग पूरी हो जाती है तो रेशों को तने से अलग किया जाता है रेशों को धोकर

सुखाया जाता है ।

 

रेशों को सुखाना और भंडारण , अलग किए गए रेशों को अच्छी तरह से धोकर धूप में सुखाया जाता है ।

सूखे रेशों को बांधकर सूखे और हवादार स्थान पर रखा जाता है , जब तक उन्हें बाजार में नहीं  भेजा जाता ,

 

jut ki kheti , भारत के ग्रामीण अर्थव्य्वस्था में बहुत महत्वपूर्ण है । या लाखों किसान परिवारों को ,

रोजगार देती है ।

 

 

 

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