Kesar ki kheti, केसर एक बहुत ही कीमती और सुगंधित मसाला है जिसे क्रोसक सैटिव पौधे से ।
प्राप्त किया जाता है इसका उपयोग औषधीय , खाद्य , और सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है भारत ,
में केसर की खेती मुख्य रूप से जम्मू , और काश्मीर में होती है लेकिन अब हिमांचल प्रदेश , उत्तराखंड
और कुछ अन्य क्षेत्रों में भी इसकी खेती की जा रही है ।
केसर की खेती की तैयारी
kesar ki kheti ठंडी और शुष्क जलवायु में अच्छी होती है 15°c से 20°c तक तापमान उपयुक्त होता है
अधिक नमी और वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती सफल नहीं होती ।
मिट्टी का चयन , रेतीली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है मिट्टी का PH 6 से 8 के बीच होना चाहिए
मिट्टी में जल निकासी अच्छी होनी चाहिए पानी नहीं ठहरना चाहिए , खेत को 2 से 3 बार जोतें , गहरी जोताई
करें ताकि मिट्टी भुरभुरी और हवादार हो जाये। अंतिम जोताई के समय 10 से 15 टन गोवर की खाद प्रति
हेक्टेयर डालें ।
Kesar ki kheti बीज का चयन
आदर्श आकार 10 सेमी या उससे अधिक परिधि वाले कॉमर्स को सर्वोत्तम माना जाता है उत्पादन क्षमता , बड़े
कॉमर्स से अधिक फूल और कॉमर्स उत्पन्न होती है , जिससे उत्पादन बढ़ता है , कॉमर्स को ऐसे विक्रेताओं से
खरीदें जो उच्च गुणवत्ता वाले और ताजे कॉमर्स प्रदान करतें है ?
ऐसे कॉमर्स चुनें जो पहले उपयोग में नहीं आए हो और जिनमे कोई रोग या क्षति न हो , रोग और कीट नियंत्रण
कॉमर्स को खरीदनें से पहले ध्यान से जांचे की उनमें कोई फफूंदी या कीट न हो , बुवाई से पहले कॉमर्स को ,
फफूंदनाशक घोल में डुबोकर सुखना चाहिए ताकि रोगों से सुरक्षा हो ।
केसर की बुवाई
केसर की बुवाई एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो फसल की गुणवत्ता और उत्पादन को सीधे प्रभावित करती है ।
सही विधि से बुवाई करने से उच्चगुणवत्ता वाली केसर प्राप्त होती है
क्यारियाँ बनाना 15 से 20 सेमी ऊँची क्यारियाँ बनाए , जिनकी चौड़ाई 1 से 1.5 मीटर और लंबाई आवश्यकता
अनुसार रखें क्यारियों के बीच 30 से 40 सेमी की दूरी रखें ताकि सिंचाई और देखभाल में सुविधा हो ,
कंद का चयन , स्वस्थ , रोगमुक्त और 10 से 15 ग्राम वजन वाले कंद चुने , बुवाई की गहराई कंदो को 15 से 20 सेमी
गहराई में लगाएं , दूरी कंदों के बीच 10 से 15 सेमी की दुरी रखें कतारों के बीच 20 से 25 सेमी की दूरी रखें ।
रोपण विधि कंदो को हाथ से या हल्के फावड़े की सहायता से लगाएं , कंदो को मिट्टी से ढक कर हल्का दबाव दें ?
ताकि वे स्थिर रहें ।
केसर की सिंचाई
बुवाई के बाद प्रारंभिक सिंचाई अगस्त के अंत से अक्टूबर तक , बुवाई के तुरंत बाद अगस्त के अंत से अक्टूबर
तक मिट्टी की नमी बनाए रखने के लिए हल्की सिंचाई करे अंतराल हर 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें ,
जब तक कि कंदो में अंकुरण न हो जाये ।
फूल आने से पहले , नवंबर में पौधों के विकास को बनाए रखने के लिए सिंचाई करें हर 15 दिन के अंतराल पर हल्की
सिंचाई करें , जब तक पौधों कि पत्तियां पूरी तरह से मुरझा न जाये
दवाई का प्रयोग
kesar ki kheti में कीट और रोग नियंत्रण के लिए दवाइयों का उपयोग सा सावधानी पूर्वक और सीमित मात्रा में करना आवश्यक
है , क्योंकि यह एक संवेदन शील और मूल्यवान फसल है । अत्यधिक रसायनों का प्रयोग केसर की गुणवत्ता और पर्यावरण
दोनों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकतें है ।
केसर में प्रमुख रोग और नियंत्रण ,
कंदों का सड़ना और पौधों की मृत्यु, एम् 45 (Moncozeb) फफूंदनाशी का उपयोग करें । प्रति 15 लीटर पानी में ,
30 ग्राम मिलाकर छिड़काव करें । पौधों की जड़ों और तनों का सड़ना , ब्लू कॉपर (Copper Oxychloride) का
उयपोग करें प्रति 15 लीटर पानी में 30 ग्राम मिलकर छिड़काव करें पत्तियों में विकृति और विकास में कमी , नीम
ऑयल 1000ppm, का उपयोग करें प्रति 15 लीटर पानी में 30 मिली लीटर मिलाकर छिड़काव करें दवाइयों का
छिड़काव सुबह या शाम के समय करें जब तीव्र धूप न हो निर्दिष्ट , मात्रा में ही दवाइयों का उपयोग करें अधिक मात्रा
से पौधों को नुकसान हो सकता है
केसर की फसल तैयार होने के बाद
केसर की फसल तैयार होने के बाद उसकी गुणवत्ता बनाये रखें , केसर के फूलों की कटाई सुबह के
समय करें जब फूल पूरी तरह से खिले हों और ताजगी बानी हो फूलों को हाथ से सावधानी पूर्वक तोड़ें और हवादार
टोकरी में रखें ताकि वे दबे न ही , फूल तोड़ने के 10 से 12 घंटे के भीतर लाल रंग के
तीन कलंक (Stigmas) को पंखुड़ियों से अलग करलें ताकि गुणवत्ता बनी रहे , साफ हाथों या दस्तानों का उपयोग करके
सावधानी पूर्वक अलग करें , सुखानें की प्रक्रिया केसर की गुणवत्ता और रंग को बनाये रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण
है , कलंको को छाया में फैलाकर 25 से 40 घंटे तक सुखाये , आधुनिक तरीका 40c से 50c तापमान पर हॉट
एयर ड्रायर , या सोलर ड्रायर का उपयोग करके 4 से 6 घंटे सुखाएँ जिससे गुणवत्ता बनी रहती है ।