Matar ki kheti एक लाभदायक कृषि है , जो किसानों को कम लागत और उच्च उपज के साथ लाभ ?
प्रदान कर सकती है , भारत में मटर की खेती व्यापक रूप से की जाती है , मटर की खेती न केवल हमारे
आहार को समृद्धि बनती है , बल्कि यह किसानों के लिए भी एक महत्वपूर्ण आय का स्त्रोत है , मटर में
प्रोटीन , फाइबर और विभिन्न विटामिन और मिनरल्स की मात्रा भरपूर होती है ,
मटर की खेती का महत्त्व
भारत में मटर की खेती का आर्थिक महत्त्व बहुत है , यह फसल न केवल किसानों का आय प्रदान करती है
बल्कि यह रोजगार के अवसर भी पैदा करती है , मटर की खेती से जुड़े उद्योग , जैसे की प्रसंस्करण और ,
निर्यात भी अर्थवयवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है ।
matar ki kheti के लिए जलवायु और मिट्टी
matar ki kheti के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी का चयन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है मटर की खेती मुख्य
रूप से ठंडे और शुष्क मौसम में की जाती है , जो इसकी वृद्धि और उत्पादन के लिए आदर्श होती है , मटर की ,
खेती के लिए उपयुक्त तापमान और वर्षा की आवश्यकताएं बहुत महत्वपूर्ण है , मटर की खेती के लिए तापमान
15 से 20 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए , अधिक तापमान या अत्यधिक वर्षा भी फसल को नुकसान ?
पहुँचा सकती है ,
उपयुक्त तापमान और वर्षा
matar ki kheti के लिए ठंडा और शुष्क मौसम उपयुक्त होता है , तापमान 15 से 20 डिग्री सेल्सियस के बीच होना
चाहिए , वर्षा की आवश्यकता फसल की विभिन्न अवस्थाओं में अलग , अलग होती है , लेकिन सामान्यतः 600 से ,
800 मिमी वर्षा पर्याप्त होती है ।
मटर की खेती की तैयारी
खेत की तैयारी में जुताई और पाटा उचित होता है , जो मिट्टी को उपजाऊ बनाने में मदद करती है , जुताई से मिट्टी
ढ़ीली होती है , जिससे जड़ें गहराई तक जा सकती है , और पोषक तत्वों का अवशोषण कर सकती है , मिट्टी की ?
उपचार भी महत्वपूर्ण है , इसमें मिट्टी में उपयुक्त उर्वरकों का उपयोग करना शामिल है , जो फसल को आवश्यक ,
पोषक तत्व प्रदान करते है ।
बीज की तैयारी , और उपचार भी matar ki kheti की तैयारी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है , बीज उपचार से बीजों
को रोगों से बचाया जा सकता है , जिससे फसल की उत्पादन बढ़ती है बीजों को उपयुक्त फफूंदनाशकों से उपचारित ,
करना चाहिए , जिससे बीज जनित रोगों को नियंत्रित किया जा सकता है ।
बुवाई का सही समय और प्रक्रिया
matar ki kheti के लिए बुवाई का सही समय महत्वपूर्ण है , जो फसल की उत्पादन को निर्धारित करती है , बुवाई
का सही समय और विधि का सही चयन फसल की सफलता के लिए आवश्यक है , मटर की बुवाई का सही समय ,
अक्टूबर से नवंबर तक होता है , जब तापमान ठंडा होता है , इस समय बुवाई करने से फसल को उचित विकास के
लिए पर्याप्त समय मिलता है ।
बीज की मात्रा और बुवाई की विधि , फसल की उपज को प्रभावित करती है , सही मात्रा में बीज बोने से पौधों को
उचित दूरी और विकास के लिए पर्याप्त स्थान मिलता है , पंन्ति में बुवाई करने से पौधों की देखभाल और फसल ,
की निगरानी करना आसान होता है , यह अधिक उपज देने वाली होती है , क्योकि पौधों को उचित दूरी पर ?
बोया जाता है ।
मटर की फसल की देखभाल
मटर की फसल की उचित देखभाल से न केवल उपज बढ़ती है , बल्कि फसल की गुणवत्ता भी सुधरती है , मटर
की फसल की देखभाल में कई महत्वपूर्ण पहलू शामिल है जिनमे से कुछ प्रमुख है सिंचाई की आवश्यकताएं ।
उर्वरक और पोषक तत्वों का प्रबंधन और खरपतवार नियंत्रण , मटर की फसल को नियमित सिंचाई की आवश्यकता
होती है , खासकर जब पौधे छोटे होते है , और जब फूल और फल लगतें है , सिंचाई मिट्टी का प्रकार और जलवायु ,
पर निर्भर करती है ।
उर्वरक और पोषक तत्व
उर्वरकों का प्रयोग मटर की फसल की उपज को बढ़ाने में मदद करती है , नाइट्रोजन फास्फोरस , और पोटाश जैसे ,
प्रमुख पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है , नाइट्रोजन , फास्फोरस और पोटाश की मात्रा , मटर की फसल के लिए
उचित मात्रा उपयोग करना चाहिए , आमतौर पर 20 से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन 40 से 60 किलोग्राम फास्फोरस ।
और 20 से 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की सिफारिस की जाती है ?
जैविक खाद का उपयोग , करने से मिट्टी की सेहत में सुधार होती है , और फसल की उत्पादन बढ़ती है , गोवर
की खाद और हरी खाद जैसे जैविक विकल्पों का उपयोग करना फायदेमंद होता है ,
खरपतवार नियंत्रण , मटर की फसल की देखभाल का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू है , खरपतवार फसल के साथ ,
पोषक तत्वों और पानी के लिए प्रतिस्पर्धा करते है , जिससे उपज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है , नाइट्रोजन का
उपयोग 20 से 30 किलोग्राम बुवाई के समय , फास्फोरस 40 से 60 किलोग्राम , पोटाश 20 से 30 किलोग्राम ?
बुवाई के समय , गोवर की खाद 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर खेत की तैयारी के दौरान ।
कीट और रोग प्रबंधन
मटर की फसल पर कीटों और रोगों का हमला होने से बचाव के लिए प्रभावी प्रबंधन आवश्यक है , मटर की फसल
को कई कीटों से खतरा होता है , जिनमे से कुछ प्रमुख कीट है , फली छेदक यह कीट मटर की फली में छेद ,
करता है , और उसके अंदर के दानों को खाता है , जिससे फसल को काफी नुकसान होता है ।
प्रमुख रोग और उनका नियंत्रण
पाउडर मिल्डयू यह एक फंगल रोग है , जो पत्तियों पर सफ़ेद पाउडर जैसी परत जमा देता है , जिससे पौधों की
संश्लेषण क्षमता कम हो जाती है , रस्ट रोग , यह रोग पत्तियों और तनों पर नारंगी या भूरे रंग के धब्बे के रूप ?
में दिखाई देता है , जिससे पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है , इन रोगों के नियंत्रण के लिए फ़न्गलिसाइड का ,
उपयोग किया जा सकता है ।
जैविक नियंत्रण विधियों का उपयोग करके कीटों और रोगों को नियंत्रण किया जा सकता है , इनमें शामिल है ,
जैविक कीट नाशक , जैसे की नीम आधारित उत्पादन जो कीटों को नियंत्रण करने में मदद करते है ,
मटर की फसल तैयार होने का समय
मटर की फसल तैयार होने का समय किस्म , और बुवाई पर निर्भर करता है , मटर के फसल तैयार होने का समय
75 से 120 दिन का होता है बुवाई का समय अक्टूबर से नवंबर के बीच होता है , रबी फसल के रूप में ।
मटर की फसल की कटाई का सही समय और विधि फसल की गुणवत्ता को निर्धारित करती है , आमतौर पर मटर
का फसल तब तैयार होती है , जब इसके दाने नरम और रसीले होते है , कटाई का सही समय , सुबह के समय ?
करना उचित माना जाता है , जब दानें अधिक ताजगी भरे होते है ,
कटाई के बाद मटर को सही तरीके से भंडारण करना भी महत्वपूर्ण है , भंडारण की उचित तकनीके फसल ,
को लंबे समय तक ताजा रखनें में मदद करती है ।