Papita kis mahine me boya jata hai ?

Papita kis mahine me boya jata hai , पपीते की बुवाई का सही समय , भारत की विभिन्न जलवायु  परिस्थितियों को देखते ?

हुए , पपीते की बुवाई मुख्य रूप से फरवरी , मार्च बसंत ऋतू में , क्योकि यह समय अच्छा है । इस अवधि में बुवाई करने से पौधे

को प्रारंभिक विकास के लिए पर्याप्त समय मिलता है । खासकर उन क्षेत्रों में जहा बाद में बारिश या कड़ाके की सर्दी पड़ती है ।

 

इस समय बोये गए पौधों में लगभग 8 से 10 महीने में फल आने लगते है । यह समय उन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है , जहा मानसून

में अत्यधिक वर्षा होती है ,

Papita ka fal

पपीते की खेती के लिए कुछ महत्वपूर्ण

जून , जुलाई या सितंबर मानसून  और सरद ऋतू , यह समय अच्छा है  मानसून की शुरुआत के साथ या उसके ठीक बाद बुवाई ?

करना भी फायदेमंद होता है , इस समय नमी पर्याप्त होती है , जो पौधों के लिए अनकूल है , सितंबर अक्टूबर का समय भी

अच्छा माना  जाता है खासकर उन क्षेत्रों  में जहां पाले का खतरा कम हो , इस समय बोये गए पौधों को सर्दियों में पाले से ,

बचाने के लिए उचित प्रबंधन की आवश्यकता होती है ।

 

जलवायु और तापमान , पपीता  एक उष्णकटिबंधीय फल है , इसे धूप और गर्म आर्द्र जलवायु पसंद है , तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस ?

का तापमान पपीते की खेती के लिए सबसे उपयुक्त होता है , 10 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान फलों कि वृद्धि और पकने को रोक सकता

है । पपीते , पाले के प्रति बहुत संवेदनशील पहुंच सकता है । पाला पड़ने पर पौधे और फल दोनों को नुकसान पहुंच सकता है ।

 

मिट्टी का प्रकार , अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी , रेतीली या दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है , भारी और चिकनी मिट्टी जिससे पानी जमा ,

होता है । जड़ों में सड़न पैदा कर सकती है । मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए ।

 

Papita kis mahine me boya jata hai ? खेती की तैयारी और रोपण

भूमि की 1 से 2 बार गहरी जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाये और खरपतवार निकल जाये । रोपण के लिए 60×60 सेंटी मीटर आकार के गड्ढे

तैयार करें और उन्हें कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें ताकि धूप और हवा से मिट्टी के हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाये । गड्ढों को मिट्टी सड़ी हुई गोबर

की खाद 10 से 15 किलो ग्राम प्रति गड्ढा और नीम की खली , लगभग 1 किलो प्रति गड्ढा मिश्रण से भरे दें ।

 

रोपण , पालीथीन को सावधानी से हटाकर मिट्टी सहित पौधे को गड्ढे में लगाएं । पौधों की बीच की दूरी किस्म और क्षेत्र के आधार पर 1.8×1.8 या

1.5×1.5 मीटर रखी जाती है । सघन रोपण के लिए , पूसा , नन्हा , जैसी किस्मों का उपयोग करके 1.2×1.2 मीटर की दूरी पर 6400 पौधे प्रति ?

हेक्टेयर तक लगाए जा सकते है । papite ki mahine me

Papita ki mahine me boya jata hai

सिंचाई

पपीते के पौधों को पर्याप्त पानी की आवश्यकता होती है । गर्मियों में 5 से 7 दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई करें । सर्दियों में 10 से 15 दिन के

अंतराल में सिंचाई करें । जल भराव से बचें , क्योकि इससे जड़ों में सड़न हो सकती है । ड्रिप सिंचाई प्रणाली पानी की बचत और उचित नमी ?

बनाये रखने के लिए सबसे प्रभावी तरीका है ।

 

खाद और उर्वरक , मिट्टी के प्रकार , वर्षा और पौधों की आयु के अनुसार खाद और उर्वरक दें । रोपण के बाद , पहले , तीसरे , पांचवे और सातवें

महीने में 200 ग्राम नाइट्रोजन , फास्फोरस और पोटेशियम प्रति पौधे के हिसाब से दे सकते है । समय , समय पर जैविक खाद जैसे गोबर की खाद

और वर्मी कंपोस्ट का प्रयोग भी कर सकते है ।

 

खरपतवार और रोग नियंत्रण , खेत को खरपतवार मुक्त रखे , खरपतवार पोषक तत्त्वों और पानी के लिए प्रतिस्पर्धा करते है । नियमित निराई गुड़ाई

करें । रोग , पपीते में लगने वाले प्रमुख रोग , जैसे डंपिंग , ऑफ जड़ सड़न पर्ण कुंचन वायरस और कीटों , जैसे माहू सफ़ेद मक्खी से बचाव के लिए ?

उचित उपाय करें । विशेष रूप से जल जमाव वाले क्षेत्रों में जड़ सड़न रोग आसानी से लग सकता है । जिसके बचाव के लिए अच्छे जल निकासी की व्यवस्था

और सही फफूंदनाशक का उपयोग महत्वपूर्ण है ।

 

पपीते की खेती एक लाभदायक व्यवसाय हो सकता है । लेकिन आप सही समय पर बुवाई करें और उचित कृषि पद्धतिओं का पालन करें , अपनी अस्थानीय

जलवायु और मिट्टी के प्रकार को समझकर आप पपीते की शानदार पैदावार प्राप्त कर सकते है ।

 

 

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