Soybean ki kheti मुख्य रूप से भारत के उन क्षेत्रों में होती है जहाँ गर्म और आर्द्र जलवायु ,
होती है यह खरीफ की फसल है और इसे मानसून के मौसम में उगाया जाता है ।
भारत में सोयाबीन की प्रमुख खेती
मध्यप्रदेश भारत में सोयाबीन की उत्पादन में सबसे आगे है इसे सोयाबीन की राजधानी भी कहा
जाता है , कुछ चुनिंदा राज्यों में बड़े पैमाने पर होती है जैसे मध्यप्रदेश देश का लगभग 45-50%
सोयाबीन उत्पादन यहीं होता है इसे सोयाबीन का गढ़ भी कहा जाता है ।
महाराष्ट्र , दूसरा सबसे बड़ा उत्पादन राज्य , विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्र में प्रमुखता से खेती ,
राजस्थान यहाँ की जलवायु और मिट्टी सोयाबीन के लिए उपयुक्त है कोटा झालाबाड़ प्रमुख जिलें है ।
कर्नाटक , दक्षिण भारत में सोयाबीन उत्पादन में अग्रणी , छत्तीसगढ़ , उभरता हुआ राज्य जहाँ
soybean ki kheti बढ़ रही है , उत्तर प्रदेश , खासकर पूर्वी और मध्य भागों में खेती होती है ।
तेलंगाना हाल के वर्षो में सोयाबीन की खेती में वृद्धि देखी गई है ।
Soybean ki kheti की तैयारी
soybean ki kheti एक लाभदायक कृषि कार्य है लेकिन अच्छी उपज के लिए इसकी सही तरीके ?
से तैयारी जरुरी होती है , भूमि का चयन और तैयारी , दोमट मिट्टी जिसमें अच्छे जल निकासी की ,
व्यवस्था हो सोयाबीन के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है, PH मान 6.0 से 7.0 के बीच उपयुक्त
होता है खेत की तैयारी , खेत की गहरी जोताई करें , दो से तीन बार हल्की जुताई करें और मिट्टी को ?
भुरभुरी बनाएं , खेत में अच्छी तरह से गोवर की खाद या कम्पोस्ट 25 से 30 टन प्रति हेक्टेयर मिलाएं
जल निकासी की उचित व्यवस्था करें ।

बीज का चयन
सोयाबीन एक प्रमुख तिलहन और प्रोटीन युक्त फसल है जिसकी खेती भारत में कई राज्यों में की जाती
है अच्छी उपज के लिए सही किस्म का चयन और आधुनिक तरीके से बुवाई अत्यंत आवश्यक है ।
प्रमुख किस्में
- JS335 अधिक उपज देने वाली 95 से 100 दिन
- JS95-60 मध्य अवधि , रोग प्रतिरोधी 100 से 105 दिन
- JS 20-29 सूखा सहनशील 90 से 95 दिन
- RVS 2001-4 झुलसा रोग प्रतिरोधी 95 से 100 दिन
- NRC37(Ahilya-6) अच्छी दाने की गुणवत्ता 100 से 110 दिन
फफूंद नाशक से उपचारित , थिरम या कैप्टन 2.5 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज या , कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम ,
प्रति किलो ग्राम बीज , बोने से ठीक पहले राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें , 6 ग्राम प्रति किलोग्राम
बीज इससे जड़ों में गांठे बनती है ,और नाइट्रोजन की पूर्ति होती है ।
बुवाई का समय
बुवाई का समय खरीफ मौसम , मध्य भारत में जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह तक मानसून
की पहली अच्छी वर्षा के 8 से 10 दिन बाद, बुवाई की विधि , कतारों से कतार 30 से 45 सेमी पौधे से पौधे ।
5 से 10 सेमी बीज दर 70 से 80 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर किस्म के आधार पर थोड़ी घट बढ़ संभव
गहराई , बीज को 3 से 4 सेमी गहराई तक बोना चाहिए , बुवाई का तरीका , सीड ड्रिल या हल से लाइन में
बोना उत्तम है ।
सोयाबीन की सिंचाई
सोयाबीन एक वर्षा आधारित फसल मानी जाती है लेकिन यदि सिंचाई की सुविधा हो तो कुछ खास समय पर
सिंचाई करने से उत्पादन में अच्छी वृद्धि होती है , मुख्य अवस्थाओं पर सिंचाई , पुष्प अवस्था , बुवाई के 30 से
35 दिन बाद फूल झड़ने से रोकने और फलियों की संख्या बढ़ाने के लिए फलियां बनाना बुवाई के 45 से 50 दिन
बाद दानों का अच्छा विकास सुनिश्चित करने के लिए दाना भराव अवस्था बुवाई के 60 से 65 दिन बाद दानों को पूर्ण
विकसित करने के लिए इन अवस्थाओं पर सिंचाई करना उच्च उपज के लिए बहुत लाभकारी होता है ।
सोयाबीन की फसल में कीट नाशक , रोग नाशक दवा का उपयोग
सोयाबीन की अच्छी फसल पाने के लिए समय पर कीटनाशक और रोग नाशक दवाई का छिड़काव जरुरी होता है ।
ताकि पौधों को कीट और बीमारियों से बचाया जा सके , कीट नियत्रण दवा , लीफ माईन , पत्तियों से सुरंग बनता
है डाइमेथोएट 30Ec 1 मिली लीटर पानी , सेमीलूपर , पत्तियाँ कुतरता है , इन्डोक्साकार्व 14.5 Sc मिली लीटर ,
चक्री इल्ली , पत्तियां खाकर जाल बनाता है ।
रोग नियत्रण दवा , मुख्य रोग झुलसा रोग , पत्तियों पर भूरे धब्बे कार्बेन्डाजिम 50wp 1 ग्राम प्रति लीटर , जड़ सड़न
पौधा अचानक सूखने लगे , ट्राइकोडर्मा या थिरम से बीज उपचार करें जैविक रोग , पत्तियों पर भूरे पीले चकत्ते
हेक्साकोनाजोल या प्रोपिकोनाजोल 1 मिली प्रति लीटर , रोग का छड़ दिखते ही तुरंत दवा का छिड़काव करें ,
रोकथाम के लिए बुवाई के 30 से 35 दिन बाद पहला स्प्रे करें और जरुरत अनुसार 10 से 15 दिन में दोहराएं ।
दवा का छिड़काव सुबह या शाम के समय छिड़काव करें , दवा छिड़कने से पहले मौसम साफ हो बारिश न हो
सिफारिस की गई मात्रा का ही उपयोग करें ?
सोयाबीन की फसल तैयार होने का समय
सोयाबीन की फसल बीज बोने के बाद 80 से 110 दिन लगभग 3 से 3.5 महीने में पककर तैयार हो जाती है या ?
किस्म और जलवायु के अनुसार थोड़ा भिन्न हो सकती है , फसल तैयार होने के लक्षण , पतियाँ पीली होकर झड़ने
लगती है , फलियां भूरे रंग की हो जाती है , फलियों को हिलाने पर अंदर से खट खटाहट सुनाई देती है , दाने
सख्त और पूरी तरह के पके हुए होते है , तने और शाखाएं सूखने लगती है ।

कटाई का सही समय , जब 80% से अधिक फलियां सूख जाएं और मौसम साफ हो , देर से कटाई करने पर दाने ,
झड़ सकते है । फसल काट कर अच्छी तरह से धूप में सुखाएं , दानों को नमी 10-12% से अधिक न हो ।
तभी भंडार करें ।
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